Wednesday, October 27, 2010

बिहार- आकांक्षा एक गौरवशाली भविष्य की

आज जब नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्विकसित् किये जाने के प्रयास तेज़ हो रहे है बिहार के सामने एक बहुत ही उम्दा अव्सर है विश्व मे फिर से शिक्षा हब के रूप मे पुन: उबर के आने का. नालन्दा विश्वविद्यालय जिसकी स्थापना चौथी शतब्दी मे हुई थी तकरीबन 800 साल पूर्व तक परिचालित था. अपने समय मे विश्व के सर्वश्रेष्ठ शिक्शन संश्थानो मे से एक था और यहा एशिया भर से छात्र शिक्षा प्राप्त करने आते थे.

इस प्रक्रिया को वस्तविक्ता का स्वरूप देने के लिये नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर अमर्त्य सेन के नेत्रत्व मे नालंदा मेंटर ग्रुप को स्थापित किया गया था जो कि इस विश्वविद्यालय के अंतरिम शासी बोर्ड के रूप में भी कार्य करेगा. इस परियोजना के साथ बिहार अब अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में है और विभिन्न देश इस प्रक्रिया पर नज़र रखे हुए है.

इसमे कोइ शक़ नही है कि यह एक प्रगतिशील कदम है, परंतु सवाल यह है कि क्या इस संस्थान मे विद्यार्थी लालटेन की रौशनी के तले शिक्शा प्राप्त करेंगे? यद्यपी सरकार् इस विशाल परियोजना को लागू करने मे लग गयी है, जो ऊर्जा संकट राज्य के विकास मे हर प्रकार से बाधा उत्पन्न कर रहा है उसे सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ संबोधित करना ज़रूरी है. विभिन्न अनुमानों के अनुसार राज्य में बिजली की 1,000-1,200 मेगावाट से अधिक की कमी है, हर दिन विभिन्न कस्बों और शहरों को घंटो के लिए बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा है जिसके कारण जनता को डीज़ल चालित जेनरेटर पर निर्भर करना पड़ रहा है.


अब एक ऐसे वैकल्पिक ऊर्जा ढांचे की ज़रूरत है जो मौजूदा व्यवस्था की कमियों से मुक्त हो. विकेन्द्रीकृत अक्षय ऊर्जा एक संभावित समाधान के रूप मॅ उभर कर आता है जो कि टिकाऊ और स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करने मे सक्षम् है, ट्रांस्मिशन और डिस्ट्रिबुशन घाटे के मुद्दे को काफी हद तक हल करता है और आगे रोजगार के अवसर पैदा करने की क्षमता रखता है.

विधानसभा चुनाव के चलते एक बार फिर से बिजली की कमी चर्चा का एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा बन गयी है. राज्य के विकास के लिये ऊर्जा की कमी को पूरा करना बहुत ज़रूरी है और नीतिकारो के लिये इस समस्या का हल निकालना प्राथमिकता है. बिहार में अभी भी बड़े पैमाने पर वातावरण को प्रदूषित करने वाले कोयला संचालित बिजली संयंत्र नहीं है और राज्य को नए बिजली संयंत्र स्थापित भी करने है, क्यॉ ना यह नया निवेश अक्षय ऊर्जा मे किया जाये? नीति निर्माताओं को अब इस मुद्दे को गंभीरता से लेना होगा अब जब नालंदा विश्वविद्यालय पुनरुद्धार परियोजना की वजह से अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान बिहार पे है, सरकार के सामने राज्य को विकास के पथ पर ले जाना अत्यंत महत्तवपूर्ण है. नीतिकारो को यह साबित है कि वे राज्य को अन्धकार से उबार कर प्रगती और सतत विकास की राह की ओर ले जाने के लिये प्रतिबद्ध है.


बिहार के सम्मुख एक तरफ यह एक चुनौती है और वही दूसरी तरफ अपने सुवर्णमय इतिहास को पुनर्जीवित कर एक सतत भविष्य के पथ निर्माण का एक सुनहरा अवसर है. राजनेताओ को इस शानदार अवसर का सदुप्योग कर विश्व के सामने एक उदाहरण रखना है और दिखाना है की सतत विकास संभव है, यह देख्नना दिलचस्प होगा कि वे किस प्रकार इस अवसर का लाभ उठाते है.

- शाश्वत राज

Sunday, October 24, 2010

Bhitiharwa Ashram-An experience of a lifetime

An appropriate occasion, an appropriate location and a noble cause, Greepneace’s Urja Kranti Yatra was flagged off on Gandhi Jayanti from the Gandhi Ashram in Bhitiharwa. The Yatra which will travel across 10 districts of Bihar is aimed at creating social awareness on the Decentralised Renewable Energy and is bringing people together to support for the same in unison.

The Yatra was flagged off by Omkar Das Manikpuri (Nattha of Peepli Live fame) who casted his vote pledging his support for the Decentralised Renewable Energy. The event also saw hundreds of people (including several Mukhiyas and Sarpanch) turning up and supporting the cause.

The play staged by the theater yatris attracted all the eye balls and was effective in conveying the message that DRE is very much feasible and is capable of fulfilling our energy needs.

What an irony, the place which witnessed the origin of one of the biggest revolutions in India is now in state of neglect; the only light this ashram gets at night is through the solar lamp post installed there.

The air felt pure, lush greenery all around and the place was still far away from the crowd and hustle bustle…

Saturday, March 7, 2009

GLOBAL WARMING AND ECONOMIC MELTDOWN

Recession, the most terrible and horrific word, is here with no signs of releasing us from its shackles. Job cuts and salary trimming has become the order of the day as organizations are hit badly.

Somewhere down the line this entire process has started the thinking wheel inside my head rolling and so many thoughts just rushing in and out. We have yet not been able to find the solution for the melting down of the Arctic and Antarctic and this Economic meltdown is here, staring at us. Hey !!! Eco Meltdown could be used synonymously for both the phenomenon and what a co incidence, both these events are scaring the life out of the human race.

Some people have already started predicting the end of the world and many others, are ending their lives. Is there a possible solution visible? I wish this ECO meltdown is taken care of soon and we could heave a sigh of relief....